Father Property – भारत में अक्सर संपत्ति से जुड़े विवाद काफी पेचीदा हो जाते हैं, खासकर तब जब परिवार में गोद लिया हुआ बच्चा हो। बहुत से लोग ये नहीं समझ पाते कि क्या गोद लिए गए बच्चे को भी वही अधिकार मिलते हैं जो सगे बच्चों को मिलते हैं। इसी को लेकर हाल ही में एक मामला हाईकोर्ट पहुंचा, जहां कोर्ट ने इस मुद्दे पर साफ और बड़ा फैसला सुनाया है। इस फैसले ने एक बार फिर साबित कर दिया कि गोद लिया हुआ बच्चा भी पिता की संपत्ति में बराबरी का हकदार होता है, अगर गोद लेने की प्रक्रिया सही तरीके से हुई हो।
क्या था पूरा मामला
यह केस उत्तर प्रदेश का है। यहां जगदीश नाम के एक व्यक्ति को उसके मामा ने गोद लिया था। मामा की मौत के बाद, जगदीश ने उनके चल और अचल संपत्ति पर अपना हक जताया। लेकिन मामा की बहनों ने इसका विरोध किया और अदालत में यह कहते हुए अर्जी डाली कि जगदीश को संपत्ति में कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि वह गोद लिया हुआ बेटा है और गोद लेने की प्रक्रिया पर सवाल हैं।
जगदीश ने कोर्ट में 25 अक्टूबर 1974 का गोदनामा पेश किया, जिसमें साफ लिखा था कि उसे विधिवत रूप से गोद लिया गया था। उसने यह दावा किया कि चूंकि वह गोद लिया गया बेटा है, इसलिए उसे भी पिता की संपत्ति में पूरा हिस्सा मिलना चाहिए।
कानूनी बहस और अपीलें
शुरुआत में चकबंदी अधिकारी ने जगदीश के पक्ष में फैसला सुनाया और उसे संपत्ति का उत्तराधिकारी माना। लेकिन मृतक की बहनों ने इस फैसले को चुनौती देते हुए ऊपरी अदालत में अपील की। अपील स्वीकार हुई और जगदीश के हक में आया फैसला पलट गया।
इसके बाद जगदीश ने पुनरीक्षण याचिका दायर की, लेकिन वह भी खारिज कर दी गई। आखिर में जगदीश ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और वहां से उसे राहत मिली।
दोनों पक्षों की दलीलें क्या थीं
जगदीश की ओर से कहा गया कि 1 जनवरी 1977 से पहले अगर कोई गोदनामा किया गया है, तो उसके लिए रजिस्ट्रेशन जरूरी नहीं होता था। और जब 1974 में उसे गोद लिया गया, उस समय मृतक की पत्नी ने इसका कोई विरोध नहीं किया था। यानी गोद लेने की प्रक्रिया में कोई कानूनी खामी नहीं थी।
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दूसरी ओर, मृतक की बहनों ने कहा कि गोद लेने की प्रक्रिया संदिग्ध थी, और उस वक्त मृतक की पत्नी जीवित थीं, जिनकी सहमति नहीं ली गई थी। उनका दावा था कि चूंकि प्रक्रिया पूरी तरह सही नहीं थी, इसलिए जगदीश का संपत्ति पर कोई कानूनी अधिकार नहीं बनता।
हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
हाईकोर्ट ने पूरे मामले का गहराई से अध्ययन किया और दोनों पक्षों की दलीलों को सुना। कोर्ट ने साफ कहा कि एक जनवरी 1977 से पहले किए गए गोदनामे का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य नहीं था। अगर गोद लेने की प्रक्रिया स्पष्ट है और उसके समर्थन में साक्ष्य मौजूद हैं, तो उस पर शक नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने यह भी माना कि जब जगदीश को गोद लिया गया था, तब मृतक की पत्नी ने कोई आपत्ति नहीं की थी, इसलिए अब इतने वर्षों बाद इस पर सवाल उठाना गलत है। कोर्ट ने यह फैसला सुनाया कि जगदीश को मृतक की पूरी चल और अचल संपत्ति पर कानूनी अधिकार है।
इस फैसले से क्या सबक मिलता है
इस फैसले से यह बात साफ हो जाती है कि अगर किसी बच्चे को सही तरीके से गोद लिया गया है, तो वह भी परिवार की संपत्ति में पूरा हकदार होता है। कानून में दत्तक संतान और जैविक संतान के अधिकारों में कोई फर्क नहीं किया जाता, बशर्ते गोद लेने की प्रक्रिया वैध हो।
यह भी जरूरी नहीं कि हर गोदनामा रजिस्टर्ड हो, खासकर अगर वह 1977 से पहले का है। अगर दस्तावेज मौजूद हैं और उसमें किसी भी समय आपत्ति नहीं उठाई गई, तो वह पूरी तरह से मान्य होता है।
हाईकोर्ट के इस फैसले ने एक अहम कानूनी पहलू पर रोशनी डाली है। गोद लिए बच्चे को भी बराबरी का हक है, और अगर सारी प्रक्रिया सही ढंग से पूरी हुई हो, तो कोई उसे संपत्ति से वंचित नहीं कर सकता। यह फैसला उन लोगों के लिए एक मिसाल बन सकता है जो या तो गोद ले चुके हैं या भविष्य में ऐसा करना चाहते हैं। पारिवारिक रिश्ते सिर्फ खून से नहीं, भरोसे और कानून से भी बनते हैं – और ये फैसला यही साबित करता है।